हिमाचल के ऊंचे पहाड़ों एवं पर्यटक स्थलों पर बर्फबारी का दौर चल रहा है। भारी बर्फबारी के कारण अस्थायी रूप से सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हुआ है। कहीं बिजली गुल हो गई, तो कहीं पीने का पानी नलों से नदारद है। कई क्षेत्रों में यातायात भी बंद है। कई इलाकों में दैनिक उपभोक्ता वस्तुओं की आपूर्ति भी नहीं हो पा रही। खबरसार लेने-देने की व्यवस्था वाले संचार तंत्रों के तार भी टूट रहे हैं। कहीं पर्यटक फंस गए, तो कहीं-कहीं जान पर आफत बनी हुई है। इन सब दिक्कतों को देखें तो यह लगता है कि बर्फ कहर ही बरपाती है। पर नहीं, बर्फ तो प्रकृति की एक देन ही नहीं बल्कि एक वरदान है।
यहां तक कि भारी बर्फबारी से होने वाले नुक्सान भी इसके फायदों के आगे गौण हो जाते हैं। यह तो सुनने में भी आ रहा हे कि हिम-नदियां (ग्लेश्यिर) धीरे-धीरे सिमट रही हैं। कारण धरती का गर्माना (ग्लोबल वार्मिंग) बताया जा रहा है। जिस गति से हिम-नदियां सिमट रही हैं स्थायी नदियों में बहने वाली चांदी की धाराएं समाप्त होती जा रही हैं। हिम-नदियों से निकला नदियों का पानी जहां पन-बिजली उत्पादन के लिए आवश्यक है वहीं खेतों में पैदा होने वाले अनाज व अन्य फसलों की सिंचाई के काम भी आता है। भारी बर्फबारी के कारण हिम-नदियों के तेजी से सिमटने की प्रक्रिया पर अकुंश लग सकता है और हिम अधिक देर तक नदियों के पानी से अनगिनत लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
व्यापक और समग्र रूप से देखा जाए तो बर्फ जलचक्र के टिकाऊ बने रहने के लिए आवश्यक है। इससे न केवल नदियों के सतही पानी की निरंतरता बनी रहती है, बल्कि जमीनी पानी का स्तर भी बना रहता है। बर्फ के धीरे-धीरे पिघलने से जमीन में इस पानी का रिसाव भी धीरे-धीरे और काफी गहराई तक होता है। इससे जमीनी पानी 'रीचार्ज' होता रहता है। बर्फ धीरे-धीरे पिघलती है, इसलिए पानी जमीनी सतह पर तेजी से नहीं बहता और इस कारण से जमीन की सतह की मिट्टी का क्षरण नहीं होता।
बर्फ की चादर चाहे जितनी मोटी भी क्यों न हो, इसके नीचे दबने वाले पेड़-पौधे व सूक्ष्म जीव नहीं मरते। कारण यह है कि बर्फ के रोओं में हवा घुली होती है। इसलिए बर्फ का फैलाव पानी के मुकाबले औसतन 10 गुणा होता है। यानी बर्फ के 10 कप पिघला दें तो एक कप पानी का मिलेगा। बर्फ में दबे पौधों में अन्य सूक्ष्म जीवों को जिंदा रहने के लिए बर्फ में घुली हवा से ही ऑक्सीजन मिलती है। बर्फ की परत जमीन की सतह को गर्म भी रखती है। यह भी बर्फ में हवा की मौजूदगी के कारण संभव है क्योंकि हवा ताप के संचरण को रोकती है। इसलिए बर्फ के नीचे जमीन को ऊर्जा के बने रहने से जमीन का तापमान अधिक नहीं गिरता।
जमीन में बिखरे व दबे बीज, कंद, गांठें, जिनसे वनस्पति का प्राकृतिक प्रजनन होता है और उन्हें उगने के लिए विशेष सुप्तावस्था और नमी व हवा की जरूरत होती है, तभी अगले मौसम में ये अंकुरित हो सकते हैं। इसे 'स्ट्रेटीफिकेशन' कहते हैं। इस प्रक्रिया को बर्फ ही पूरा करती है। इसलिए बर्फ वनस्पति के प्राकृतिक प्रजनन में सहायक होती है। बर्फ के कारण कम होने वाले तापमान से ऊंचाई वाले क्षेत्रों के फलदार पौधों की 'चिलिंग घंटों' की जरूरत होती है जोकि उसे अपनी सुप्तावस्था के महीनों में मिलने चाहिएं। लेकिन लम्बे सूखे की वजह से तापमान बढऩे व वातावरण में कम नमी होने के कारण इनकी सुप्तावस्था समय से पहले टूट जाती है, जिससे ये पूरी तरह फल-फूल नहीं सकते। बर्फ की पतली परत पर पडऩे वाले पाले के कारण जमीनी तापमान काफी गिर सकता है। कई बार सर्दियों में अधिक सूखे के कारण जमीन धीरे-धीरे नीचे तक सूख जाती है। इससे पौधों को भारी नुक्सान हो जाता है।
बागवानी विशेषज्ञ बताते हैं कि ऐसे हालात में सूखी घास की छाद फलदार पौधे के ईर्द-गिर्द बिछानी जरूरी हो जाती है। भारी बर्फबारी से बड़े पेड़ों आदि की टहनियां भी टूट कर गिर जाती हैं। इस नुकसान से बचने के लिए बागीचों में पौधों की सही तरह से कांट-छांट की जानी जरूरी है।
बर्फ जीव-जंतुओं की सेहत पर भी अच्छा प्रभाव डालती है। देर तक चलने वाले सूखे मौसम के कारण नाक, गले व फेफड़ों से जुड़ी बीमारियां पैदा हो जाती हैं। बर्फ वातावरण में तरावट पैदा करती है जिससे नाक, गले व फेफड़ों में सूखी हवा जाने से रूक जाती है और ये बीमारियां खत्म हो जाती हैं। सर्दियों में तो ऊंचे पर्यटक स्थलों पर कारोबार पर्यटकों के आगमन पर ही निर्भर रहता है। बर्फबारी पर्यटकों को बड़ी संख्या में आकर्षित करती है। सर्दियों में ठंडे पडऩे वाले कारोबारियों की चांदी हो जाती है।
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