परोल की सूखी धरती पर लहलहाने लगा मौसंबी का बगीचा
जिला हमीरपुर जैसे कम ऊंचाई वाले और पानी की कमी वाले क्षेत्र में भी बागवानी की अच्छी संभावनाएं हैं। कभी बागवानी के लिए अनुपयुक्त माने जाने वाले इस क्षेत्र में अब हिमाचल प्रदेश सरकार ने एचपी शिवा परियोजना के माध्यम से बागवानी को बढ़ावा देने के लिए एक विशेष पहल की है।
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कृषि अधिकारियों ने मक्की की फसल को फॉल आर्मी वर्म से बचाने की दी सलाह
विभाग के अधिकारियों ने बताया कि इस कीट ने पिछले वर्ष मक्की की फसल को काफी नुक्सान पहुंचाया था। उन्होंने बताया कि गर्मी अधिक होने पर यह कीट ज्यादा सक्रिय होता है। इसलिए जिला के किसान इस वर्ष भी इस कीट के प्रति सावधान रहें। यह कीट लाखों की तादाद में फसल पर हमला कर उसे पूरी तरह बर्बाद कर देता है।
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हिमाचल के बागवानों की आर्थिकी को सुदृढ़ करने में कारगर साबित होगा कलस्टर विकास कार्यक्रम
बागवानी ने पिछले पांच दशकों के दौरान राज्य के किसानों-बागवानों की आर्थिकी सुदृढ करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जिससे बागवानी हिमाचल प्रदेश के पहाड़ी क्षेत्र में आजीविका का प्रमुख स्रोत बन गई है। मुख्य रूप से सेब व अन्य समशीतोष्ण फलों जैसे आड़ू, नाशपाती, बेर, खुमानी और उपोष्णकटिबंधीय फलों जैसे आम, साइट्रस, लीची, आदि के उत्पादन में शानदार उपलब्धियों के कारण प्रदेश को फल राज्य के रूप में पहचान मिली है।
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हिमाचल में नई तकनीक से तैयार होंगे उच्च गुणवत्ता और उत्पादकता वाले पौधे
बागवानी क्षेत्र प्रदेश की अर्थव्यवस्था का अभिन्न अंग है। प्रदेश सरकार किसानों और बागवानों के कल्याण के लिए कई अभिनव कदम उठा रही है। इस कड़ी में राज्य सरकार बागवानी क्षेत्र में उच्च गुणवत्ता और उत्पादकता वाले पौधों को विकसित करने के लिए अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग करने की योजना बना रही है।
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ऊना में मिलेट्स की खेती को बढ़ावा देने हेतू खंड स्तर पर 60 कृषि सखियों को किया प्रशिक्षित
मोटे अनाज वाली फसलों जैसे ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कंगनी, चीना, कोदो, कुटकी और कुट्टू को मिलेट क्रॉप कहा जाता है। मिलेट्स को सुपर फूड कहा जाता है, क्योंकि इनमें पोषक तत्व अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में होते हैं। भारतीय मिलेट्स अनुसंधान संस्थान के अनुसार, रागी यानी फिंगर मिलेट में कैल्शियम की मात्रा अच्छी होती है। प्रति 100 ग्राम फिंगर मिलेट में 364 मिलिग्राम तक कैल्शियम होता है। रागी में आयरन की मात्रा भी गेहूं और चावल से ज्यादा होती है।
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केमिकल्स और खाद के बगैर बढ़ाई पैदावार, फसल के दाम भी चोखे
खतरनाक रसायनों से युक्त महंगे कीटनाशकों और खाद का अत्यधिक प्रयोग करके जमीन एवं फसलों में जहर घोलने के बजाय भारत की पारंपरिक प्राकृतिक खेती से भी अच्छी पैदावार हासिल की जा सकती है। प्राकृतिक खेती से तैयार फसलें जहां खतरनाक रसायनों से पूरी तरह मुक्त होती हैं, वहीं बाजार में इन्हें अच्छे दाम भी मिलते हैं।
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किसानों को प्राकृतिक खेती अपनाने के लिए जागरूक करें वैज्ञानिक: राज्यपाल
राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने आज शिमला के निकट क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केन्द्र मशोबरा का दौरा किया। केंद्र के अपने पहले दौरे पर राज्यपाल ने वैज्ञानिकों का आह्वान किया कि वे संस्थानों से बाहर निकलकर अपने क्षेत्र में किसानों को प्राकृतिक खेती के प्रति जागरूक करें। उन्होंने कहा कि किसान इसके लाभ जानकर निश्चित रूप से इस पद्धति को अपनाएंगे।
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