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विचार
हिमाचल दर्शन फोटो गैलरी: जिसके बूते हिमाचल गौरव का सम्मान दिया, उसी को उजाड़ने पर तुली सरकार

बहुत दिनों से कुछ लिखा नही कारण समय का अभाव और दूसरा कुछ सार्थक विचार, बस लिखने के लिए कुछ लिखना मेरे लिए मुश्किल है।

जीवन है तो संघर्ष है

ये सच है की हर साल नयी उम्मीदों को संजोये, नया साल आता है और गुज़िश्ता साल कुछ खट्टी मीठी यादें देकर चला जाता है। इसी तरह साल दर साल अच्छे - बुरे अनुभवों की पूंजी समेटते और सहेजते हुए हम अपना पूरा जीवन गुज़ार देते हैं। जीवन के साथ साल, महीनें, दिन, घंटे, मिनट, सेकंड और उससे भी सूक्ष्म पल - लम्हें जुड़े होते हैं।

नारायण चंद पराशर जैसी शख्सियत को समर्पित होना चाहिए पहाड़ी दिवस

हाड़ी (हिमाचली) भाषा के मानकीकरण के लिए कई प्रयास हुए हैं, जिसमें हिमाचल प्रदेश में बोली जाने वाली पहाड़ी बोलियां जैसे कांगड़ी, मंडियाली, चंबियाली, कुल्लुवी, महासू पहाड़ी, सिरमौरी आदि को एक माला में पिरोने के लिए कोषिश की गयी। लेकिन यह स्वर्गीय नारायण चंद पराशर हैं जो विशेष रूप से पहाड़ी भाषा आंदोलन के भीतर खड़े रहे।

बरसाती रोग, कोविड-19 और होमियोपैथी

बरसात ने पूरे देश में दस्तक दे दिया है। धूप गर्मी और लू से लोगों को निजात मिली है। आकाश में बादलों पृथ्वी पर हरियाली का राज आया। मेढकों की टर्र-टर्र, झींगुरों की झायं-झाय, बादलों की गरज-तड़प और बरसात की रिमझिम एवं झम- झम ने मौसम को रहस्यमई और सुहाना बना दिया है। 

असहज नहीं है होम क्वारंटीन का प्रोटोकाॅल

दुनिया के लिए नासूर बन चुके कोरोना वायरस ने मानव जीवन के मानो मायने ही बदल डाले हों। सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, अध्यात्मिक और न जाने कितने क्षेत्रों में बदलावों को कोरोना ने जन्म दिया है। मनुष्य को उसकी जरूरतों और जीने के तौर-तरीकों के बारे में इतनी गहनता के साथ जानने और समझने का शायद ही कभी अवसर मिला हो।

कुदरत का अनमोल वरदान है बर्फ

हिमाचल के ऊंचे पहाड़ों एवं पर्यटक स्थलों पर बर्फबारी का दौर चल रहा है। भारी बर्फबारी के कारण अस्थायी रूप से सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हुआ है। कहीं बिजली गुल हो गई, तो कहीं पीने का पानी नलों से नदारद है। कई क्षेत्रों में यातायात भी बंद है। कई इलाकों में दैनिक उपभोक्ता वस्तुओं की आपूर्ति भी नहीं हो पा रही। खबरसार लेने-देने की व्यवस्था वाले संचार तंत्रों के तार भी टूट रहे हैं। कहीं पर्यटक फंस गए, तो कहीं-कहीं जान पर आफत बनी हुई है। इन सब दिक्कतों को देखें तो यह लगता है कि बर्फ कहर ही बरपाती है। पर नहीं, बर्फ तो प्रकृति की एक देन ही नहीं बल्कि एक वरदान है। 

'मैन इन एक्शन'

चुनाव खत्म फिर भी यह शख्स एक्शन में हैं क्यों ? क्योंकि यह नेता नहीं हैं। पोंग बांध विस्थापितों का मामला हो या सीमेंट कंपनियों की लूट, इन्होंने सबसे सीधा पंगा ले रखा है।

तस्वीरें बोलती है : अनुराग के लिए हमीरपुर का प्रेम हुआ कम

राजनीति में औकात सत्ता के साथ कब बदल जाये कोई पता नहीं लगता। इसलिए किसी मुगलाते मे नहीं रहना चाहिए। तस्वीरों में देखिए। हमीरपुर के सांसद, पहली तस्वीर में (क्लोज अप ) बिना बुके लिए माननीय मुख्यमंत्री का स्वागत करने पहुंच गए, दूसरी तस्वीर ( पहली तस्वीर का फूल वर्शन) सभी मुख्यमंत्री के लिए बुके लेकर खड़े हैं। और तीसरी तस्वीर में माननीय मुख्यमंत्री और नादौन के हारे हुए विधायक को भाजपा कार्यकर्ताओं ने फूल मालाओं से लाद रखा है और सांसद महोदय को किसी ने पूछा तक नहीं है।

अभिषेक राणा ही हमीरपुर से क्यों ?

आगामी लोकसभा चुनावों का बिगुल कभी भी बज सकता है और जिस तरह से केंद्र और राज्य की भाजपा सरकार का ग्राफ लगातार गिर रहा है उससे कांग्रेस के नेता ज्यादा उत्साहित हैं और इसी बजह से टिकट के दावेदारों की संख्या बढ़ती जा रही है। इनमें सबसे बड़े नाम नेता विपक्ष मुकेश अग्निहोत्री और कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू का है। क्योंकि, दोनों ही बड़े नाम हैं और विधानसभा में विपरीत परिस्थितियों में चुनकर पहुंचे हैं। लेकिन, यह दोनों नेता अगली बार मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं इसलिए यह नहीं चाहेंगे कि खामखा पंगा लिया जाए। 

हिमाचली हकों पर डाका

हिमाचल में निर्माणाधीन और निर्मित परियोजनाएं जो बनकर तैयार भी हो चुकी हैं, अथवा जिनमें उत्पादन भी बरसों से प्रारंभ हो चुका है, वे चाहे केंद्रीय विद्युत उत्पादन निगम के अधीन थीं या फिर किसी गैर सरकारी कंपनी के अधीन बनीं अथवा स्वंय विद्युत विभाग ने अपने नाम से बनवाईं। इन परियोजनाओं के निर्माण कार्यों में हिमाचली लोगों को रोजगार नहीं मिल पाया है।

माटी की महक खो रहा कुल्लू दशहरा

अन्तर्राष्ट्रीय लोक-नृत्य उत्सव के रूप में विश्वविख्यात कुल्लू दशहरा अपनी माटी की महक खोने लगा है। धीरे धीरे इस लोकोत्सव का तिलिस्म टूटता जा रहा है। अब इस उत्सव में न तो पहले जैसे लोकनृत्य होते हैं, और न ही मिट्टी के दिए टिमटिमाते हैं। अब मिट्टी के दिये का स्थान झिलमिलाते बिजली के बल्बों ने लिया है और सांस्कृतिक कार्यक्रम लालचन्द प्रार्थी कलाकेन्द्र तक ही सिमटकर रह गए हैं।

हिमाचल में जीरो बजट खेती की और हकीकत

हम हिमाचल वासियों के लिये बहुत ही गर्व का विषय है आचार्य-कुल के सूर्य आचार्य देवव्रत जी को अपने बीच महामहिम राज्यपाल महोदय के रूप में पाकर? राज्यपाल अक्सर राजनीति के मंझे खिलाड़ी ही को नियुक्त किया जाता है जो पक्ष की सरकार को विपक्षी काम करने के लिये आंखें दिखाएं या विपक्ष को सही सोच आगे रखने के लिये भी आंखें दिखाएं।