मूल पर्व: इस दिन होती हर फरियाद पूरी
‘मूल’ पर्व का इतिहास विश्व प्रसिद्ध अंतरराष्ट्रीय कुल्लू दशहरे से पुराना है। इतिहास के अनुसार कुल्लू दशहरा ‘मूल’ पर्व के 121 बर्षों बाद शुरू हुआ था।
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हिडिम्बा के बिना कुल्लू दशहरे की कल्पना भी नहीं
कुल्लू दशहरा की देवी हिडिम्बा के बिना कल्पना भी नहीं की जा सकती। कहा जाता है कि देवी हिडि़म्बा ने ही कुल्लू के राजाओं को राज पाठ दिलाया था। शायद यही कारण है कि आज भी अन्तर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरे में देवी हिडि़म्बा का जाना लाज़मी माना जाता है। कहा जाता है कि जब तक देवी कुल्लू न पहुंचे, तब तक कुल्लू दशहरे को शुरू नहीं किया जा सकता।
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लोक संस्कृति का अद्भुत उत्सव कुल्लू दशहरा
दशहरे की परम्परा में हिमाचल में कुल्लू दशहरे का अपना विशिष्ट स्थान है। जब अन्य भारत में दशमी को दशहरा समाप्त होता है तो कुल्लू का दशहरा आरम्भ होता है जो लगातार सात दिन तक चलता है। यह दशमी को शुरू होता है, इसलिए इसे विदादशमी (दशमी की विदाई) भी कहा जाता है।
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पहाड़ी संस्कृति में देवता
हिमालय का आंचल देव संस्कृति से भरा पड़ा है। देवताओं का योगदान पहाड़ी संस्कृति को बचाने के लिए आज भी यथावत कायम है। पहाड़ी संस्कृति को कायम रखने में देवताओं की भूमिका विशिष्ट मानी जाती रही है। इस बात का हम सहज ही अंदाजा लगा सकते हैं कि हिमाचल के अधिकतर गांव के लोग आज के युग में भी देवताओं पर अटूट आस्था रखते हुए अपने घरेलू झगड़ों को देवताओं के समक्ष ही निपटाते हैं। देवता उनके लिए न्यायधीश है। धार्मिक तथा सामाजिक कार्य भी देवता की अनुमति से ही करवाए जाते हैं।
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हिडिम्बा के बिना कुल्लू दशहरे की कल्पना भी नहीं
कुल्लू दशहरा की देवी हिडिम्बा के बिना कल्पना भी नहीं की जा सकती. कहा जाता है कि देवी हिडि़म्बा ने ही कुल्लू के राजाओं को राज पाठ दिलाया था. शायद यही कारण है कि आज भी अन्तर्राष्ट्रीय कुल्लू दशहरे में देवी हिडि़म्बा का जाना लाज़मी माना जाता है. कहा जाता है कि जब तक देवी कुल्लू न पहुंचे, तब तक कुल्लू दशहरे को शुरू नहीं किया जा सकता.
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राजसी ठाठ-बाठ की याद दिलाती है राजा की जलेब
शहरे के दौरान प्रतिदिन चार से पांच बजे के बीच राजा की शोभायात्रा राजसी ठाटबाट की याद दिला देती है. यहां परम्परानुसार दशहरे के दौरान कुल्लू के राजा (अब छड़ीबदार) प्रतिदिन राजपालकी (सुखपाल) पर बैठकर दशहरे की परिक्रमा करते हैं. जिसे स्थानीय भाषा में 'राजा री जलेब' कहा जाता है.
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बड़ी ही अनूठी और समृद्ध है कुल्लू की देवसंस्कृति और देव परम्पराएं
कुल्लू जिला के जन-जन का इतिहास देवी देवताओं के अखंड प्रभाव में रहा है. इसलिए देवभक्ति की महिमा रही और पारिवारिक व सामाजिक जीवन देवमय बना रहा. मेलों, धार्मिक कार्यों, बड़े-बड़े उत्सवों में देव भक्ति व शक्ति का प्रभाव बना रहा. लोकगाथा, लोकप्रथा देवभक्तिमय रही है. देव संस्कृति व कुल्लू के लोगों को केवल मनोरंजन ही नहीं करवाती बल्कि कुल्लू के जनजीवन का एक अभिन्न अंग है.
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जाखू में जयराम जलाएंगे रावण
राजधानी में आज दशहरा उत्सव मनाया जाएगा। जाखू हनुमान मंदिर में आज प्रातः दस बजे हवन यज्ञ हुआ। राम नाभा क्लब नाभा से हनुमान मंदिर जाखू तक रामलीला के पात्रों की झांकियां निकालेगा। ये झांकी बैंड बाजे की धुनों संग हनुमान मंदिर जाखू पहुंचेगी। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर रिमोट कंट्रोल से रावण के पुतले का दहन करेंगे। शाम पांच बजे मुख्यमंत्री जाखू मंदिर पहुंचेंगे। इस बीच वह राम मंदिर से आए राम और रावण के दलों का युद्ध देखेंगे। शाम करीब छ: बजे मुख्यमंत्री रिमोट दबाकर रावण का दहन करेंगे। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर जाखू में रावण के 35 फुट पुतले का रिमोट से दहन करेंगे।
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विजय व लोक संस्कृति का अद्भुत उत्सव : कुल्लू दशहरा
दशहरे की परम्परा में हिमाचल में कुल्लू दशहरे का अपना विशिष्ट स्थान है। जब अन्य भारत में दशमी को दशहरा समाप्त होता है तो कुल्लू का दशहरा आरम्भ होता है जो लगातार सात दिन तक चलता है। यह दशमी को शुरू होता है, इसलिए इसे विदादशमी (दशमी की विदाई) भी कहा जाता है।
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