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पूजा-अर्चना और झंडा रस्म के साथ दियोटसिद्ध में चैत्र मास मेले शुरू
उत्तर भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थल बाबा बालक नाथ मंदिर दियोटसिद्ध में चैत्र मास मेले मंगलवार से आरंभ हो गए। तीन माह तक चलने वाले इस मेले का हमीरपुर की जिलाधीश एवं बाबा बालक नाथ मंदिर न्यास की आयुक्त देबश्वेता बनिक ने मंदिर परिसर में पूजा-अर्चना, हवन और झंडा रस्म के साथ चैत्र मास मेलों का शुभारंभ किया। झंडा चढ़ाने की रस्म अदायगी से मेले की शुरुआत की गई।
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हिमाचल के पारंपरिक व्यजंन अब थाली से हुए गायब
सर्दी के मौसम में हिमाचल प्रदेश के पहाडी इलाकों में परोसे जाने वाले पारंपरिक व्यजंन अब थाली गायब हो गए है। अब यहां न गेंहु की मौड़ी भूनी जाती है, न कोदरे की रोटी पकती है और न ही कुल्थ की दाल परोसी जाती है।
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हज़ारों साल बाद भी जीवित है ट्रांसगिरी की ये पौराणिक परंपरा
सिरमौर ज़िला के दुर्गम गिरिपार क्षेत्र में आज से बूढ़ी दिवाली का जश्न शुरू हो गया है। बीती मध्यरात्रि गिरिपार के लोगों ने हाथों में मशाल लिए पारम्परिक रीती रिवाजों के साथ इस महापर्व का आगाज किया। यह महापर्व अगले एक सप्ताह तक जारी रहेगा। दीपावली पर्व के करीब एक माह बाद मनाए जाने वाले इस त्यौहार में सभी ग्रामीण खूब बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं।
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यमुना किनारे धूमधाम से मनाया गया छठ पर्व
पूर्वी भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक छठ पर्व हिमाचल के विभिन्न समुदायों के शहर पांवटा साहिब मे धूमधाम से मनाया गया। इस मौके पर पूर्वी भारत के लोगों ने यमुना व बाता नदी के किनारे छठ पूजा की। इस प्रसिद् पर्व के लिये देर शाम यमुना व बाता नदी पर पूजा अर्चना के लिये भारी भीड़ जुटी रही महिलाओं ने सूर्य भगवान की पूजा की व उन्हे जल चढ़ाया।
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सदियों से हस्तशिल्पियों की आजीविका का साधन रहा है लवी
अंतरराष्ट्रीय लवी मेले में भले ही आधुनिकता हावी हो गई है, लेकिन यहां अभी भी पहाड़ी संस्कृति की झलक भी देखने को मिलती है। लवी में एक मार्केट अभी भी ऐसी लगती है, जहां पर हिमाचल के दुर्गम क्षेत्रों में बनाई जाने वाली शॉल, टोपियों और अन्य पारंपरिक हस्तशिल्प के उत्पाद मिलते हैं। यहां लोग बुशैहरी टोपियां पहनते हैं जो कि काफी आकर्षक लगती है। इसी मार्किट की बदौलत लवी मेला सदियों से हथकरघा से जुड़े लोगों की आजीविका का साधन बना हुआ है।
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'लोई' से शुरू हुआ सफर बदला 'लवी' में
लवी का शाब्दिक अर्थ है, 'लोई'. यह ऊन से बनी एक गर्म शॉल होती है. इस शब्द की उत्पति से ही लवी शब्द की उत्पति हुई है. हिमाचल प्रदेश के अधिक सर्दी वाले क्षेत्रों में जो गर्म ऊन से बना 'चोला' पहना जाता है, उसे भी 'लोइया' कहा जाता है। सिरमौर जिला में 'लोइया' बड़े शौक से पहना जाता है। लवी का मेला सतलुज के किनारे बसे रामपुर में आयोजित किया जाता है। रामपुर रियासत में लवी मेला मध्य शताब्दी से चल रहा है।
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ऐतिहासिक और व्यापारिक मेला है लवी, जानिए क्या है खासियत
हिंदुस्तान - तिब्बत मार्ग पर शिमला से 130 किलोमीटर दूर रामपुर बुशैहर. यहां हर बर्ष 11 से 14 नवंबर तक लगता है एतिहासिक लवी मेला। लवी, हिमाचल प्रदेश का ऐसा एकमात्र मेला है, जिसका लंबा पारंपरिक इतिहास हैं। कुल्लू का दशहरा और मंडी की शिवरात्रि की तरह लवी मेले में देवी-देवताओं का समागम नहीं होता।
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यहां जन्म से मरण तक हर आयोजन में होता है लाल चावल का प्रयोग
हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला की अति दुर्गम चौहार घाटी में सदियो से चली आ रही लोक परंपरा के चलते लाल चावल वहां के लोगों के जीवन का अंग बन चुका है। जन्म से लेकर मरण तक अपने परंपरागत अनुष्ठानों में यहां के लोग अपने खेतों में उगने वाले लाल चावलों का प्रयोग करते हैं। लाल चावल के बिना चौहार घाट के लोगों का कोई भी अनुष्ठान पूरा नहीं माना जाता। विवाह समारोह, मुंडन संस्कार या अन्य कोई भी शुभ कार्य हो लाल चावल को हर रस्म और भोज में शामिल किया जाता है। यही नहीं, अंतिम क्रिया की रस्म अदायगी में भी लाल चावल का उपयोग होता है।
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यहां दूल्हे के सिर नहीं सजता सेहरा
दूल्हे का सेहरा सुहाना लगता है... यह आवाज मंगली पंचायत में दूर-दूर तक सुनाई नहीं देती है। यहां शादियां बिना सेहरे के होती है। दरअसल मंगली के मजोर गांव में नाग देवता के डर से लोग शादी सेहरा बांधकर नहीं करते है।
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