पहाड़ों की खूबसूरती पर कौन फिदा नहीं हैं. खुद हिमाचलवासी भी कई बार अपने गांव से निकलकर दूसरे गांव की खूबसूरती पर मोहित हो जाते हैं. अंग्रेजी हुकुमत में कर्नल बैंटी की बरोट पर खास मेहर रही है. इसलिए इस बरोट को कर्नल बैंटी के सपनों का गांव भी कहा जाता है. बाहर से आने वाले लोगों का मन मोह जाना कोई नई बात नहीं है. 'हिमाचल न्यूज़' ने प्रदेश के छोटे-छोटे गांवों की खूबसूरती पर ध्यान केंद्रित कर एक नियमित स्तंभ आरंभ किया है. इस कड़ी में हमारे संवाददाता हंसराज ठाकुर आपको बता रहे हैं मंडी जिला के बरोट गांव की खासियत के बारे में. गांव की दहलीज तक पहुंच कर उन्होनें सब चीजों का जायजा लिया और पाया कि बरोट गांव का खुशहाल जीवन, शुद्ध वातावरण और परस्पर सदभाव किसी को यहां बसने पर मजबूर कर देता है.
ट्रिप्पल टी यानी ट्रॉली लाइन के नाम से मशहूर बरोट गांव आज पर्यटन की दृष्टि से विख्यात हो रहा है. जिला मुख्यालय मंडी से करीब 68 किलरेमीटर की दूरी और तहसील मुख्यालय से पद्धर से मात्र 40 किलोमीटर का सफर तय करने के बाद यह गांव बसा है. राष्ट्रीय उच्च मार्ग पठानकोट पर चलें तो झटींगरी से 25 किलोमीटर दूर उहल नदी के किनारे है बरोट गांव. ट्राउट फिश के शौकीनों की यह प्रदेश की सबसे पसंदीदा जगह कही जा सकती है. ट्राउट फिश के उत्पादन और शिकार के लिए बरोट के रेजवायर्स देशभर में नाम कमा चुके हैं. शानन पावर हाउस के में विद्युत उत्पादन के लिए ऊहल नदी के किनारे बनाई गई झीलों की खूबसूरती देखते ही बनती है. यहां तीन झीलें है, जो प्राकृतिक और नैसर्गिक सौंदर्य किसी को भी बरबस अपनी ओर आकर्षित करता है. गांव की खास बात तो यह भी है कि स्विटजरलैंड के बाद अगर विश्व में कहीं ट्रॉली लाइन बनाई गई है तो वह इसी गांव में है. जोगेंद्रनगर से बरोट को जोडऩे वाली इस ट्रॉली लाइन का निर्माण वर्ष 1932 में किया गया था. मंडी के राजा और कर्नल बैंटी ने इस ट्रॉली लाइन के निर्माण को लेकर पहल की थी. तब यह ट्रॉली लाइन बरोट में निर्माणाधीन पावर हाउस के लिए सामान लाने और ले जाने का मुख्य साधन था. कर्नल बैंटी के सपनों का गाँव माने जाने वाले बरोट वासी इस ट्रॉली लाइन को अनूठा उपहार मानते हैं.
इसी के साथ यह ट्रॉली लाइन बरोट गांव के लिए आवागमन का भी तेज माध्यम बन गई. आज इस ट्रॉली लाइन का महत्व पर्यटन की दुष्टि से काफी बढ़ गया है. रोमांच और साहस के खिलाड़ी अब भी इस ट्रॉली लाइन से पहाड़ी को आर-पार करते हैं.
अब बरोट गांव भी आधुनिकता का लिबास ओढ़कर दिनोंदिन विकसित होता जा रहा है. धूल मिट्टी, वाहनों की चीं-पौं, भारी भीड़-भड़ाका, सब कुछ बदला-बदला सा नजर आता है, लेकिन गांव के आसपास के ग्रामीण आंचल आज भी बदलाव की इस आवोहवा से दूर है. वे अब भी अपनी ग्रामीण शैली, प्राकृतिक सौंदर्य और संस्कृति को संजोए हुए हैं. लोगों के रहन-सहन, खान-पान यहां तक कि जीवन शैली में बदलाव भी आया है, लेकिन इस गांव के लोगों की सादगी, भोलापन और संस्कृति जीवंत दिखाई देती है. यहां का खान-पान सादगी भरा है. मेहमानवाजी का लोग भरपूर लुत्फ उठाते हैं.
भले ही यहां के लोगों का मुख्य व्यवासाय कृषि एवं बागवानी हों, लेकिन अब यहां कई लोग छोटे-मोटे व्यवसायों में रूचि लेने लगे हैं. कुछ लोग सरकारी नौकरी भी करते हैं. कुछ लोगों पेशेवर बनकर बड़े महानगरों में भी बस गए है. राजनीतिक क्षेत्र में भी यहां के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. इस गांव के युवा न केवल स्वंय संघर्ष कर रहे हैं, बल्कि युवा प्रतिभाओं को भी कुछ नया कर गुजरने की दिशा में कदम उठाने की सीख दे रहे हैं. यह गांव भले ही किसी पर्यटन या अन्य नक्शे पर न हो, लेकिन गुमनामी के अंधेरे में भी नहीं है और न ही आधुनिकता की चकाचौंध में ढलकर अपने वजूद को खोने के लिए आतुर दिखाई देता है.
ग्रामीण आज भी यही दुआ करते हैं कि हमारे गांव की सादगी, भोलेपन और संस्कृति को किसी की नजर न लगे.