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ग्लेशियर पिघलने से हिमालय की झीलों में बाढ़ का खतरा, होगी मैपिंग

सोमसी देष्टा : शिमला | June 28, 2020 07:09 PM
प्रतीकात्मक तस्वीर | PHOTO : Wikimedia

हिमाचल न्यूज : प्रदेश सरकार जलवायु से होने वाले खतरों को कम करने और जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न हुए खतरों को समझने के लिए दक्षता से कार्य कर रही है। प्रदेश सरकार ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने और अनुसंधान के लिए विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण राज्य परिषद् के तहत जलवायु परिवर्तन के लिए राज्य केंद्र स्थापित किया है।

पर्यावरण विज्ञान और प्रौद्योगिकी सचिव रजनीश ने बताया कि विभाग हिमालय में बर्फ पिघलने के कारण बनी सभी ग्लेशियर झीलों की मैपिंग करने की कार्य योजना बना रहा है। इन झीलों में काफी मात्रा में पानी होने के कारण यह भविष्य में नुकसानदेह साबित हो सकती हैं। उन्होंने कहा कि 2014 में भारी बारिश के साथ चोराबरी ग्लेशियर के आगे बनी छोटी-सी झील के फटने के कारण केदारनाथ जैसी त्रासदी हुई थी।

इस केन्द्र द्वारा हिमाचल प्रदेश में विभिन्न बेसिन और सतलुज नदी के निकटवर्ती तिब्बत जलग्रह की स्पेस डाटा के माध्यम से ग्लेशियर के कारण बाढ़ की घटनाओं को समझने के लिए ग्लेशियर झीलों की नियमित निगरानी की जा रही है।

हिमाचल प्रदेश में अज्ञात कारणों से बाढ़ की स्थितियां उत्त्पन्न होती रहती है। सतलुज घाटी में वर्ष 2000 में भारी बाढ़ आई थी, जिससे 800 करोड़ रुपये से अधिक का नुकसान हुआ था । यह घटना बादल फटने या ग्लेशियर झील के फटने से हुआ, विशेषज्ञों को इस बाढ़ के कारण ज्ञात नहीं थे, क्योंकि यह तिब्बितयन हिमालय क्षेत्र से शुरू हुआ थी। ऊचाॅई वाले क्षेत्रों में भू-स्खलन से पारछू जैसी झील बनने से निचले क्षेत्रों में जल बहाव से भारी नुकसान का खतरा पैदा हो गया था।

इसलिए यह महत्वपूर्ण हो गया है कि उपरी जल ग्रहण क्षेत्रों की अन्तरराष्ट्रीय आयाम के आधार पर निरंतर और लगातार निगरानी की जाए।

जलवायु परिवर्तन से केंद्र द्वारा 2019 में किए गए शोध के आधार पर वर्ष 2019 में सतलुज बेसिन में 562 झीलों की उपस्थिति दर्ज की गई है, जिनमें से लगभग 81 प्रतिशत (458) झीलें 5 हेक्टेयर से कम क्षेत्रफल की है, 9 प्रतिशत (53) झीलें 5 से 10 हेक्टेयर क्षेत्रफल और 9 प्रतिशत (51) झीलें 10 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्रफल की हैं।

चिनाब घाटी जिसमें चंद्रा, भागा और मियार सब बेसिन है, में लगभग 242 झीलें हैं। चंद्रा में 52, भागा में 84 और मियार सब बेसिन में 139 झीलें हैं।

ब्यास घाटी जिसमें उपरी ब्यास, जीवा, पार्वती घाटियां सम्मिलत हैं, में 93 झीलें हैं। ऊपरी ब्यास में 12, जीवा में 41 और पार्वती सब बेसिन में 37 झीलें हैं। वर्ष 2018 की तुलना में 2019 में लगभग 43 प्रतिशत वृद्धि के संकेत है।

हिमाचल प्रदेश में हिमालय क्षेत्र और इसके साथ लगते तिब्बितयन हिमालय क्षेत्र के ऊॅचे क्षेत्रों में झील बनने की प्रवृति में तेजी आई है। सदस्य सचिव हिमकोस्ट व निदेशक एवं विशेष सचिव राजस्व और आपदा प्रबन्धन डी.सी राणा ने बताया कि ऊपरी हिमालय क्षेत्र में झील बनने की घटनाओं पर परम्परागत तरीकों से नजर रखना सम्भव नहीं है। इसलिए इन क्षेत्रों में जाॅच के लिए स्पेस तकनीक बहुत ही उपयोगी और सहायक सिद्ध हुई है। उन्होंने बताया कि हिमकोस्ट का पर्यावरण परिवर्तन केन्द्र झीलों की मैपिंग और निगरानी कर रहा है। इससे हिमाचल व साथ लगते तिब्बितयन हिमालय क्षेत्र में ऐसी सभी संवेदनशील झीलों के पूर्व आंकलन में मदद मिली है।

उन्होंने बताया कि 10 हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र और 5 से 10 हेक्टेयर क्षेत्र की झीलों को नुकसान के दृष्टिगत संवेदनशील क्षेत्र के रूप में देखा जाता है। इनके फटने की स्थिति के मददेनजर राज्य के हिमालय क्षेत्र में पर्याप्त निगरानी और परिवर्तन विश्लेषण आवश्यक है, ताकि हिमाचल प्रदेश में भविष्य में ऐसी किसी भी घटना को रोक कर बहुमूल्य जीवन व संपदा को बचाया जा सके। पर्यावरण, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग प्रदेश में ग्लेशियर झीलों की मैपिंग के लिए प्रयासरत है।

क्या होती है मैपिंग
मैपिंग में झीलों की भौगोलिक स्थिति, क्षेत्रफल, जल रिसाव या फिर किसी भी तरह का खतरा, पानी के जलस्तर पर निगरानी रखी जाती है।

कैसे होगी मैपिंग
ग्लेशियर झीलों को लेकर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन समिति जो मैपिंग करवा रही है, उसके लिए ग्लेशियर पर शोध करने वाले सभी संस्थानों से मदद ली जाएगी। इन्हीं संस्थानों से डाटा एकत्रित कर झीलों की स्थिति को लेकर समग्र तस्वीर बनेगी।

खतरे का समय रहते लगेगा पता
मैपिंग से समय रहते खतरे का पता चल सकेगा। इतना ही नहीं ऐसे क्षेत्र भी चिह्नित हो सकते हैं, जिन्हें झील के टूटने से खतरा हो सकता है। ऐसे में उन्हें संवेदनशील घोषित कर वहां सुरक्षा का पुख्ता बंदोबस्त किया जा सकता है।

Posted By : Himachal News

 

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