ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ झारखंड आदिवासियों की आजादी की पहली लड़ाई “हूल क्रांति” थी। 30 जून हूल दिवस को क्रांति दिवस रूप में मनाया जाता है। इसे संथाल विद्रोह भी कहा जाता है। यह अंग्रेजों के खिलाफ आजादी की पहली लड़ाई थी। इस लड़ाई का नेतृत्व सर्वप्रथम संथाल परगना के भोगनाडीह में सिदो-कान्हू ने किया था।
अंग्रेजों के जुल्म, शोषण और अत्याचार के विरुद्ध अनुसूचित जनजाति एवं अनुसूचित जाति वर्गों ने बिगुल फूंका। इस चिंगारी की लपटें पूरे हजारीबाग, बड़कागांव, टंडवा, चतरा, रामगढ़, रांची तक पहुंच गया था। विद्रोहियों ने हजारीबाग जेल तक में आग लगा दी थी। विद्रोह में संताल और अन्य जातियों के हजारों लोगों ने अपनी कुर्बानी दी। उस विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेज सेना को एड़ी-चोटी एक करना पड़ा। संताल विद्रोह के बाद ही संताल बहुल क्षेत्रों को भागलपुर और वीरभूम से अलग किया गया और उसे 'संताल परगना' नाम से वैधानिक जिला बनाया गया। 
हूल क्रांति | Photo : Wikimedia
क्यों मनाते हैं हूल दिवस
संथाली भाषा में हूल का अर्थ होता है विद्रोह। 30 जून, 1855 को झारखंड के आदिवासियों ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ विद्रोह का बिगुल फूंका और 400 गांवों के 50,000 से अधिक लोगों ने भोगनाडीह गांव पहुंचकर जंग का एलान कर दिया। यहां आदिवासी भाई सिदो-कान्हू की अगुआई में संथालों ने मालगुजारी नहीं देने के साथ ही अंग्रेज हमारी माटी छोड़ों का एलान किया। इससे घबरा कर अंग्रेजों ने विद्रोहियों का दमन प्रारंभ किया। अंग्रेजी सरकार की ओर से आये जमींदारों और सिपाहियों को संथालों ने मौत के घाट उतार दिया। इस बीच विद्रोहियों को साधने के लिए अंग्रेजों ने क्रूरता की हदें पार कर दीं। बहराइच में चांद और भैरव को अंग्रेजों ने मौत की नींद सुला दिया, तो दूसरी तरफ सिदो और कान्हू को पकड़ कर भोगनाडीह गांव में ही पेड़ से लटका कर 26 जुलाई, 1855 को फांसी दे दी गयी। इन्हीं शहीदों की याद में हर साल 30 जून को हूल दिवस मनाया जाता है। इस महान क्रांति में लगभग 20,000 लोगों को मौत के घाट उतारा गया। 
हूल क्रांति | Photo : Youtube
Posted By : Himachal News