हिमाचल न्यूज़ : कुल्लू।
कुल्लू जिला की नग्गर पंचायत के ऐतिहासिक गांव शरण को देश के तीन चुनिंदा गांवों में क्राफ्ट हैण्डलूम विलेज के तौर पर विकसित करने के लिए चुना है। इसी के साथ देवभूमि का यह गांव अब देश के चुनिंदा दस हैंडलूम गांवों में शामिल हो जाएगा और देश में एक अलग ही पहचान बन जाएगी।
सात अगस्त को राष्ट्रीय हैण्डलूम दिवस के मौके पर केन्द्रीय वस्त्र व महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति जुबिन ईरानी दिल्ली से वर्चुअली शरण गांव को क्राफ्ट हैण्डलूम विलेज के तौर पर विकसित करने की घोषणा करेंगी।
मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर व उद्योग मंत्री बिक्रम सिंह कांगड़ा के देहरा से कार्यक्रम में जुड़ेंगे जबकि शिक्षा मंत्री गोविंद सिंह ठाकुर तिब्तियन राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला पतली कूहल के सभागार में आयोजित समारोह में उपस्थित रहेंगे।
इस अवसर पर शरण गांवों के बुनकरों को कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया है जहां उन्हें वस्त्र मंत्रालय की ओर से फ्रेमलूम यानि हथकरघा वितरित किए जाएंगे।
भारत सरकार और हिमाचल सरकार की संयुक्त पहल से क्राफ्ट हैंडलूम विलेज के रूप में शरण गांव को विकसित किया जा रहा है। इस का उद्देश्य गांव को हैंडलूम पर्यटन के रूप में विकसित करना है। ऐसे में अब शरण गांव को हैंडलूम का दर्जा, तो मिलेगा ही, साथ ही पर्यटकों को आकर्षित करने में सहायक भी सिद्ध होगा। शरण गांव के अलावा जम्मू-कश्मीर, केरल, गुजरात, उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान के गांवों को भी शामिल किया गया है।
क्राफ्ट हैण्डलूम विलेज ऐसे होगा विकसित
गांव को आकर्षक बनाने के लिए केंद्र से एक करोड़ 30 लाख रुपए और राज्य सरकार की ओर से करीब 15 लाख रुपए का प्रावधान किया गया है। इससे गांव के बुनकरों को आधुनिक हथकरघे व व्यक्तिगत वर्कशैड प्रदान किए जा रहे हैं। इसके साथ ही तीन मंजिला भवन में बुनाई विभाग, म्यूजियम, पुस्तकालय, डिस्पले व सेल्स काउंटर, ओपन कैफेटेरिया बनाया जाएगा।
ऐसा है शरण गांव
शरण गांव पुरानी शैली के मकानों और परंपरागत वेशभूषा से परिपूर्ण है। यहां के लोग भेड़ पालन से जुडे़ हैं। साथ ही ऊन का उत्पादन होने के कारण यहां ऊनी धागा ज्यादा होता है। लोग खड्डियों पर पट्टू, दोहडू, शॉल व पट्टी के पाम्परिक उत्पादनों की बुनाई करते हैं। गांव में करीब 50 से अधिक बीवर्ज और 100 से अधिक घर हैं।
क्यों मनाया जाता है हथकरघा दिवस
2014 में केंद्र में जब मोदी सरकार आई तो बुनकरों की समस्याओं पर गंभीरता से ध्यान देना शुरू किया गया और राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाने का निर्णय किया गया। हथकरघा दिवस मनाने के लिए 7 अगस्त का दिन इसलिए चुना गया क्योंकि इस दिन का भारत के इतिहास में विशेष महत्व है। उल्लेखनीय है कि घरेलू उत्पादों और उत्पादन इकाइयों को नया जीवन प्रदान करने के लिए 7 अगस्त 1905 को देश में स्वदेशी आंदोलन शुरू हुआ था। स्वदेशी आंदोलन की याद में ही 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस मनाने का निर्णय लिया गया। प्रधानमंत्री ने 2015 में हथकरघा दिवस की शुरुआत करते हुए कहा था कि सभी परिवार घर में कम से कम एक खादी और एक हथकरघा का उत्पाद जरूर रखें।
सरकारी प्रयास क्या रहे?
सरकार ने 29 जुलाई, 2015 को राजपत्र अधिसूचना के माध्यम से 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रूप में अधिसूचित किया था। सरकार का प्रयास है कि गरीबों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिले और हथकरघा उद्योग का सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्तिकरण किया जा सके। सरकार कहती रही है कि वह बुनकरों की आय बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है। केंद्रीय अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय ने उस्ताद योजना के तहत बुनकरों के प्रशिक्षण की भी व्यवस्था कराई जिससे उन्हें तकनीकी रूप से और समृद्ध किया जा सके।
बहुत प्राचीन है हथकरघा उद्योग
हथकरघा उद्योग प्राचीनकाल से ही हाथ के कारीगरों की आजीविका प्रदान करता आया है। हथकरघा उद्योग से निर्मित सामानों का विदेशों में भी खूब निर्यात किया जाता है। माना जाता है कि इस उद्योग के विभिन्न कार्यों में लगभग 7 लाख व्यक्ति लगे हुए हैं। लेकिन अगर उनकी आर्थिक स्थिति की बात की जाये तो कहा जा सकता है कि तमाम सरकारी दावों के बावजूद उनकी स्थिति दयनीय ही बनी हुई है। हालांकि 2017 में सरकार ने बड़ा फैसला करते हुए कहा था कि देश में जगह जगह स्थापित बुनकर सेवा केंद्रों (डब्ल्यूएससी) पर बुनकरों को आधार व पैन कार्ड जैसी अनेक सरकारी सेवाओं की पेशकश की जाएगी। ये केंद्र बुनकरों के लिए तकनीकी मदद उपलब्ध करवाने के साथ साथ एकल खिड़की सेवा केंद्र बने हैं लेकिन सेवाओं का सही लाभ नहीं मिल पाने की शिकायतें भी बुनकर लगातार करते हैं।
Posted By :Himachal News