हिमाचल न्यूज़ | आज समय आ गया कि भारतीय सिनेमा कैसा हो? विदेशी फिल्मों की नकल कर के विदेशो में शूटिंग कर के वहां के लाइफ स्टाईल, वेशभूष, फाइट और लव की नकल कर के करोड़ो रूपये की फ़िल्म बनाना, क्या यही भारतीय सिनेमा है। फ़िल्म के बड़े प्रोडक्शन हाउस इसी में उलझे है। ऐसे में अब ये बड़ा सवाल बन गया है कि भारतीय संस्कृति को खराब करना ही अभिव्यक्ति की आजादी और भारतीय सिनेमा है।
कहते हैं कि सिनेमा, नाटक, चित्रकला समाज का आईना होता है। जो भी घट रहा होता है, कलाकार उसे अपने अंदाज में बिना किसी का दिल दुखाए हंसते-खेलते अपनी बात कह देता है और दर्शकों को उस विषय पर सोचने को मजबूर कर देता है। लेकिन आज पैसे और ग्लैमर की इस दौड़ में OTT और प्रोडक्शन हाउस सब भूल गए है।
कैसा हो फिर भारतीय सिनेमा?
पहले तो हमें अपनी फिल्मों का विदेशी सिनेमा का तुलनात्मक अध्ययन करना बंद करना होगा। अपने सिनेमा की एक अलग पहचान बनानी होगी। भारतीय कहानी, यहां की पारंपरिक वेशभूषा, भारतीय गांव, यहां के मुद्दे, दन्त कथाए, तकनीक, सम्वेदना, जब तक हमारी फिल्मो में नही होगी तब तक वो भारतीय फ़िल्म नही होगी।
भारत, गांव प्रधान देश है। ज्यादा लोग गांव में रहते है। हमारा सिनेमा मेट्रो सिटी से शुरू हो कर वहीं पर खत्म हो रहा है। पहले हमारा सिनेमा ऐसा नहीं था। भारतीय फिल्म की शुरुआत ही ऐसी फिल्म से होती जिस के केंद्र में सत्य और धर्म है। यहां हम बात दादा फाल्के की फ़िल्म ‘राजा हरिशचंद्र’ की कर रहे हैं। फिर ‘मदर इंडिया’, ‘मेरा नाम जोकर’, ‘दो बीघा जमीन’, ‘प्यासा’, ‘दोस्ती’, ‘हकीकत’, और मुगले आजम, जैसी बहुत सी फिल्में भारतीय सिनेमा की पहचान है। लेकिन अब दो चार साल के बाद एक या दो फिल्में ही नजर आती है। हमारा सिनेमा कंटेंट से ज्यादा स्टार पर केंद्रित हो गया है, जो अब दर्शको को सिनेमा से दूर ले जा रहा है। लेकिन विदेशी OTT चेनल उस इस संस्कृति की घटिया कॉपी को खरीद रहा है और भारतीय संस्कृति को खराब करने में कामयाब हो रहा है।
भारत संगीत, नृत्य, चित्रकला और लोक नाट्य वाला देश है। भारत का हर क्षेत्र पूरी तरह से विभिन्न कलाओं से भरा पड़ा है। बस जरूरत है अंग्रेजी सोच और स्टायल को छोड़ कर अपने देसी तरीके से उस संस्कृत को बाहर लाने की जो अभी तक वहीं तक सीमित है।
आज जो बड़े प्रोडक्शन हाउस है वो अगर अपने साल के बजट में 10 करोड़ रुपये रख ले और उसे तीन फ़िल्म तीन संवेदनशील निर्देशकों पर लगाये तो साल की 30 फ़िल्म भारतीय सिनेमा को प्रस्तुत करेगी और मेरा विशवास है कि उस में से 5 फ़िल्म जरूर अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर आ कर भारतीय सिनेमा का परचम लहरायेगी।
भारतीय सिनेमा भारत की संस्कृति और कला का प्रतिनिधित्व करे।
पवन कुमार शर्मा (फ़िल्म निर्देशक)
(लेखक भारतीय सिनेमा के जाने माने फ़िल्म निर्देशक है। इन्होने ब्रिना, करीम मुहम्मद और वन रक्षक फिल्मों का निर्देशन किया है।)
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Posted By : Himachal News