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हिमाचल न्यूज़ | राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत खंड स्तर पर चयनित 60 कृषि सखियों को मिलिट्स की खेती बारे एक दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया गया। प्रशिक्षण शिविर में कृषि सखियों को हिमाचल प्रदेश में टिकाऊ कृषि व पोषण सुरक्षा हेतू “मिलिट्स की खेती एक अच्छा विकल्प” प्रेजैंटेशन के माध्यम से कंगनी, रागी, जौं, ज्वार, बाजरा, सांवक, कोदा व कुटकी की खेती व पोषण सुरक्षा पर सम्पूर्ण जानकारी दी। इसके अलावा ऊना जिला में उगाई जाने वाले मुख्य मिलिट्स रागी, कंगनी व बाजरे की खेती की बीजाई का समय, बीज की किस्म व मात्रा, फसल प्रबंधन बारे भी कृषि सखियों को प्रशिक्षित किया गया।
कृषि विज्ञान केन्द्र ऊना की कार्यक्रम समन्वयक डा. योगिता शर्मा ने बताया कि पौष्टिकता व मूल्यवर्द्धक उत्पाद जैसे मिश्रित आटा, लडडू व बिस्किट बनाकर महिलाओं के लिए आय के रूप में एक अच्छा विकल्प साबित हो सकता है। उन्होंने कहा कि यह तभी संभव हो सकता है जब जिले में खरीफ मौसम में किसान इसकी खेती करेंगे। उन्होंने बताया कि कृषि विभाग द्वारा प्रत्येक खंड स्तर पर मिलिट्स के बीज उपलब्ध है।
आतमा ऊना के परियोजना निदेशक डॉ. संतोष शर्मा ने प्राकृतिक खेती के तहत मिलिट्स की खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि आतमा ऊना द्वारा जिला की 5 महिलाओं को मिलिट्स के मूल्यवर्द्धक उत्पाद बनाने पर राज्य स्तर पर प्रशिक्षण करवाया गया है। उन्होंने कृषि सखियों को व्यक्तिगत स्तर पर मिलिट्स की खेती व मिलिट्स को अपनी दैनिक डाईट में शामिल करने के लिए प्रोत्साहित किया।
क्या हैं मिलेट क्रॉप्स? इन्हें क्यों कहा जाता है सूपर फूड?
मोटे अनाज वाली फसलों जैसे ज्वार, बाजरा, रागी, सावां, कंगनी, चीना, कोदो, कुटकी और कुट्टू को मिलेट क्रॉप कहा जाता है। मिलेट्स को सुपर फूड कहा जाता है, क्योंकि इनमें पोषक तत्व अपेक्षाकृत अधिक मात्रा में होते हैं। भारतीय मिलेट्स अनुसंधान संस्थान के अनुसार, रागी यानी फिंगर मिलेट में कैल्शियम की मात्रा अच्छी होती है। प्रति 100 ग्राम फिंगर मिलेट में 364 मिलिग्राम तक कैल्शियम होता है। रागी में आयरन की मात्रा भी गेहूं और चावल से ज्यादा होती है।
क्या है मिलेट क्रॉप्स की खासियत?
मिलेट्स क्रॉप को कम पानी की जरूरत होती है। उदाहरण के लिए गन्ने के पौधे को पकाने में 2100 मिलीमीटर पानी की ज़रूरत होती है। वहीं, बाजरा जैसी मोटे अनाज की फसल के एक पौधे को पूरे जीवनकाल में 350 मिलीमीटर पानी चाहिए होता है। रागी को 350 मिलीमीटर पानी की आवश्यकता होती है तो ज्वार को 400 मिलीमीटर पानी चाहिए होता है। जहां दूसरी फसलें पानी की कमी होने पर पूरी तरह बर्बाद हो जाती हैं, वहीं, मोटा अनाज की फसल खराब होने की स्थिति में भी पशुओं के चारे के काम आ सकती हैं।
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Posted By: HIMACHAL NEWS