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मेरा गांव

भौंरूथाच : ये सादगी...भोलापन और कहां

आलम पोर्ले | November 09, 2018 08:40 AM

पहाड़ खुद खूबसूरती की मिसाल हैं. भोलापन, सादगी, कड़ी मेहनत, यह सब पहाड़ की जीवनशैली का हिस्सा है. पहाड़ों की तरह कठोर एवं जीवट यहां का जनजीवन है. प्रकृति ने पहाड़ों के आंचल में कई ऐसे खूबसूरत भू-खंड रचे हैं जहां की प्राकृतिक आभा किसी का मन न मोह लें यह हो नहीं सकता. देवभूमि कुल्लू की सैंज घाटी पार्वती परियोजना और ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क की बजह से आज किसी परिचय की मोहताज नहीं है. 

गांव के अधिष्ठाता देव नाग
 

गांव भौंरूथाच


उपगांव : पातल, जाहिला, धारा, शाढऩुधार, चलैला, कुपड़ी, देवी-विशौना
कुल देवता : नाग व शांघड़ी
आबादी : लगभग 350
गांववासियों का मुख्य व्यवसाय : कृषि एवं बागवानी

 कुल्लू जिला के बंजार उपमंडल के तहत लारजी से महज 14 किलोमीटर दूर परियोजना निर्माण के चलते पिन पार्वती नदी के किनारे बसा सैंज आधुनिकता का लिबास ओढ़कर एक कस्बे का रूप ले चुका है. धूल मिट्टी, वाहनों की चीं-पौं, भारी भीड़-भड़ाका, सब कुछ बदला-बदला सा है, लेकिन सैंज के आस-पास के ग्रामीण आंचल आज भी बदलाव की इस आवोहवा से दूर हैं. सैंज से खूबसूरत पड़ाव देहुरी सड़क के मध्य भौंरूथाच आज भी अपनी ग्रामीण शैली, प्राकृतिक सौंदर्य और संस्कृति को संजोए हुए हैं.

सैंज से महज़ 8 किलोमीटर की दूरी पर बसे इस गांव पर न तो पार्वती परियोजना और न हीं ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क का कोई प्रभाव दिखाई देता है. परियोजनाओं के निर्माण के चलते जहां सैंज के आस-पास के गांव का रहन-सहन, खान-पान यहां तक कि लोगों की जीवन शैली ही बदल गई लेकिन इस गांव में आज भी लोगों की सादगी, भोलापन और संस्कृति जीवंत दिखाई देती है. ग्रामीणों की माने तो पार्वती परियोजना से यह गांव यूं ही नहीं बचा बल्कि इसके पीछे ग्रामीणों की एकजुटता और गांव के अस्तित्व को बनाए रखने की दृढ़ शक्ति थी.

भौंरुथाच से यूं दिखती है मनोरम वादियां
 इसीलिए यहां मेले का आयोजन नहीं होता
लगभग 20 घरों के 25 परिवार आज भी सुख चैन की जिंदगी जी रहे हैं. इस गांव की संस्कृति कु-प्रभावित न हो इसीलिए गांववासी यहां न तो किसी मेले का आयोजन करते हैं और न ही संस्कृति को प्रभावित करने वाले मनोरंजक, या पाश्चात्य संस्कृति से जुड़े कार्यक्रमों में भाग लेते. यहां का खान-पान सादगी भरा है. मेहमानबाज़ी का लोग भरपूर लुत्फ उठाते हैं.

पंचायती राज में हमेशा से रहा वर्चस्व

यह गांव हमेशा पंचायती राज में प्रतिनिधित्व करता आ रहा है. यहां के सबसे अधिक स्व. नोखूराम 20 वर्षों तक मन्हम और भौंरूथाच से पंच के पद पर विराजमान रहे. इसके बाद उनकी इस विरासत को उनके भतीजे डावे राम ने संभाला और दस वर्ष तक भौंरूथाच वार्ड के पंच रहे. इसके अलावा गांव की बहु लाल दासी सुचैहण पंचायत समिति की सदस्य रही है और बेलीराम दुशाहड़ पंचायत के प्रधान बने हैं.

कुल्लू जिला परिषद अध्यक्ष भी है इसी गांव की बहू
राजनीतिक क्षेत्र में भी यहां के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं. वर्तमान में कुल्लू जिला परिषद की अध्यक्ष रोहिणी चौधरी भी इसी गांव के धारा से सम्बन्ध रखती है. इस गांव के युवा हरीराम चौधरी भाजयुमो के मंडल अध्यक्ष रहे हैं.

गांव की सांझ
 भले ही यहां के लोगों का मुख्य व्यवसाय कृषि एवं बागवानी हो लेकिन अब यहां कई लोग छोटे-मोटे व्यवसायों में रूचि लेने लगे हैं. कुछ लोग सरकारी नौकरी भी करते हैं. कुछ लोग आईपीएच, शिक्षा और वन विभाग में सेवाएं दे रहें हैं.

गांव के युवा वर्ग का शिक्षा स्तर काफी उंचा है. यहां के युवा इंजनियरिंग, एलएलबी जैसी प्रोफेशनल डिग्री हासिल कर चुके हैं. इसके अलाबा बीएड, आईटीआई में भी युवा अपना भाग्य आजमा रहे हैं.

मीडिया और संगीत में युवाओं का दखल
गांव के युवक मीडिया क्षेत्र में और संगीत, वीडियो एलबम और मनोरंजन के क्षेत्र में संघर्षरत हैं. मीडिया के क्षेत्र में भी तीन युवा अपनी कलम का लोहा मनवा रहे हैं. गांव के युवा हरी सिंह हिमाचली गीत संगीत की दुनियां में अपना स्थान तेजी से बना रहे हैं .

गांव का एक घर
 सैंज घाटी का यह गांव भले ही किसी पर्यटन या अन्य नक्शे पर न हो लेकिन गुमनामी के अंधेरे में होते हुए भी न तो किसी समस्या से ग्रस्त दिखता और न ही आधुनिकता की चकाचौंध में ढलकर अपने बजूद को खोने के लिए आतुर दिखाई देता है. समस्या सफाई की हो, या गांव की भलाई की. यहां का शक्तिभूमि नागेश्वर युवक मंडल सदैव आगे दिखाई देता है. गांव के ग्रामीण आज भी अपने गांव पर गौरवांवित महसूस करते हैं और यही दुआ करते हैं कि काश...आने वाली पीढ़ी भी इस सादगी, भोलेपन और संस्कृति को यूं ही बनाए रखें.

आलम पोर्ले

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